Safalta Par Sanskrit Shlok : प्रिय पाठकों आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ प्रेम पर संस्कृत श्लोक शेयर करने वाले है अगर आप भी सफलता पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पढ़ना पसंद करते हैं तो आज का यह पोस्ट आपके लिए है क्योंकि आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ 10 से भी ज्यादा जीवन पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित शेयर किऐ है अगर आप Safalta Par Sanskrit Shlok पढ़ना पसंद करते हैं तो इस पोस्ट को लास्ट तक जरूर पढ़ें
दोस्तों आपके जानकारी के लिए बता दूँ कि संस्कृत में ऐसे बहुत सारे श्लोक है जिसे पढ़ने के बाद हम लोगो को बहुत कुछ सीखने को मिलता है इस वेबसाइट पर आपको बहुत सारे संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पढ़ने को मिल जाऐगा तो आइये सबसे पहले सफलता पर संस्कृत श्लोक (Safalta Par Sanskrit Shlok) पढ़ते हैं
इसे भी पढ़े :-
प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
कर्म पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
Safalta Par Sanskrit Shlok in Hindi | सफलता पर संस्कृत श्लोक
( 1 ) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥
अर्थ:
जहां नारियों की पूजा होती है और वहां वे भगवान के आदर्श में रमण करती हैं, वहां देवताओं का वास होता है। वहां, जहां उन्हें आदर्श में नहीं रखा जाता है, सभी क्रियाएं व्यर्थ होती हैं॥
इस श्लोक का अर्थ है कि सफलता उस स्थान पर प्राप्त होती है जहां महिलाओं का सम्मान किया जाता है और उन्हें स्वाभिमानपूर्वक आदर्श बनाया जाता है। वहां, जहां महिलाओं का आदर्श में सम्मान नहीं होता है, सभी क्रियाएं व्यर्थ होती हैं।
यह श्लोक महिला सशक्तिकरण के महत्व को दर्शाता है और समाज में समानता और सम्मान की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।इसके अलावा, यहां कुछ और संस्कृत श्लोक हैं जो सफलता की महत्ता पर विचार करते हैं:
( 2 ) उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
अर्थ:
केवल इच्छाशक्ति से कार्य नहीं सिद्ध होते हैं, बल्कि प्रयास के द्वारा ही सफलता प्राप्त होती है। जैसे कि एक सोते हुए सिंह के मुँह में हिरण नहीं घुसते, उसी प्रकार मनोरथों से कार्य नहीं सिद्ध होते हैं।
( 3 ) न तुल्यं विद्याति यस्य क्रियाविशेषः।
न च यशस्य वित्त भोग क्रमः।
यशो हि विपुलं नृणां वित्तं।
सुसंयोगान्न सर्वदा सिद्ध्यति॥
अर्थ:
जिसकी कर्म विशेषता से तुल्य नहीं होती है और जिसके यश और धन का भोग क्रमशः नहीं होता है, उसका यश लोगों के धन से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। सफलता सुसंयोगों से हमेशा ही प्राप्त होती है।
( 4 ) निरामयं परमं सुखं जीवनं न शोभते यः।
न दुःखेनापि नारम्भं तस्मात् त्यागः परं सुखम्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति निरोगी और परम सुखी होता है, उसका जीवन शोभायमान नहीं होता। उसे न तो दुख से आरम्भ होता है और न ही सुख से। इसलिए, त्याग ही परम सुख है।
( 5 ) कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ:
तू केवल कर्म में ही अधिकारी है, फलों में कभी नहीं। तू कर्मफल के लिए कारण नहीं हो, इसलिए कर्म में तुझे आसक्ति नहीं होनी चाहिए।
( 6 ) सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत्॥
अर्थ:
सभी सुखी हों, सभी निरोगी हों, सभी शुभ देखें, किसी को भी दुःख का हिस्सा न बनने दें॥
ये श्लोक सफलता के मार्ग पर ज्ञान और निर्देशन प्रदान करते हैं। ये सफलता को साधने के लिए उपयोगी मार्गदर्शक हैं और इंसान को संतुष्ट, समर्पित और उच्चतम सुख की प्राप्ति में मदद करते हैं।
( 7 ) उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
अर्थ:
उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। तेरे रास्ते कठिन हैं, और वे अत्यन्त दुर्गं भी हो सकते हैं, लेकिन विद्वानों कहते हैं कि कठिन रास्ते जाने योग्य होते हैं॥
( 8 ) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः॥
अर्थ:
जहां महिलाएं पूजित होती हैं और वहां वे देवताओं के समान भगवान के साथ आनंदित होती हैं, वहां सभी कार्य सफल होते हैं। जहां उन्हें आदर्श में नहीं रखा जाता है, वहां सभी क्रियाएं व्यर्थ होती हैं॥
( 9 ) योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
अर्थ:
धनञ्जय (अर्जुन)! योग में स्थित होकर कर्म करो और आसक्ति को त्याग दो। सिद्धि और असिद्धि में समता रखजब तुम कर्म में योग्यता से स्थित रहोगे और संग त्याग दोगे, तब तुम सिद्धि और असिद्धि में समान भाव रखकर समत्व को योग कहा जाएगा॥
( 10 ) यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
अर्थ:
जहां योगेश्वर कृष्ण हैं और जहां पार्थ अपना धनुष धारण करते हैं, वहां श्री, विजय, भूति, ध्रुव नीति, मति और मेरी अच्छी बुद्धि होती है॥
ये श्लोक सफलता की प्राप्ति के लिए अनुशासन, कर्मयोग, निष्ठा और वैराग्य की महत्वपूर्ण विधान सुझाते हैं। इन श्लोकों का उच्चारण और अध्ययन सफलता के मार्ग पर उन्मुख करता है और एक सत्य जीवन की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
( 11 ) उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
अर्थ:
उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। तेरे रास्ते कठिन हैं, और वे अत्यंत दुर्गं भी हो सकते हैं, लेकिन विद्वानों कहते हैं कि कठिन रास्ते जाने योग्य होते हैं॥
( 12 ) सफलता लक्ष्यं यत्र संयोगः, कौशल्यं चैव यत्र प्रयत्नः। तत्र सफलता भवेदेव निश्चितं, योगः कर्मसु कौशलं चेतसाम्॥
अर्थ:
जहां संयोग है, वहां लक्ष्य सफल होता है, और जहां प्रयास है, वहां कौशल्य सफलता का संचालन करता है। इसलिए मनोबल के योग और कर्म में कौशल से सफलता निश्चित होती है॥
( 13 ) सफलता न निमित्तं किंचित्, नापि दैवं न चानुशासनं। सफलता कर्मणि प्राप्ता, कौशल्येन च मनोगता॥
अर्थ:
सफलता का कारण न कोई निमित्त होता है, न कोई दैवी छाप होती है, और न कोई अनुशासन होता है। सफलता कर्म में ही प्राप्त होती है और उसे मनोगति और कौशल्य से प्राप्त किया जा सकता है॥
निष्कर्ष :
दोस्तों आज की इस पोस्ट में आपने जाना सफलता पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (safalta Par Sanskrit Shlok ) मै उम्मीद करता हूँ कि आपको सफलता संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पसंद आया होगा अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करें अगर इससे संबंधित आपके मन में कोई सवाल है तो आप कमेंट जरूर करें
इसे भी पढ़े :-
किराना दुकान समान लिस्ट इन हिन्दी
जनरल स्टोर आइटम लिस्ट इन हिन्दी
बच्चों के नाम की लिस्ट हिन्दी में
महीनों के नाम हिन्दी और इंग्लिश में