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प्रेम पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित | Prem Par Sanskrit Shlok

Prem Par Sanskrit Shlok : प्रिय पाठकों आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ प्रेम पर संस्कृत श्लोक शेयर करने वाले है अगर आप भी प्रेम पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पढ़ना पसंद करते हैं तो आज का यह पोस्ट आपके लिए है क्योंकि आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ 10 से भी ज्यादा जीवन पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित शेयर किऐ है अगर आप Prem Par Sanskrit Shlok पढ़ना पसंद करते हैं तो इस पोस्ट को लास्ट तक जरूर पढ़ें 

Prem Par Sanskrit Shlok

दोस्तों आपके जानकारी के लिए बता दूँ कि संस्कृत में ऐसे बहुत सारे श्लोक है जिसे पढ़ने के बाद हम लोगो को बहुत कुछ सीखने को मिलता है इस वेबसाइट पर आपको बहुत सारे संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पढ़ने को मिल जाऐगा तो आइये सबसे पहले  प्रेम पर संस्कृत श्लोक (Prem Par Sanskrit Shlok) पढ़ते हैं


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Prem Par Sanskrit Shlok in Hindi | प्रेम पर संस्कृत श्लोक


( 1 )  अतीव सर्वस्व संपन्नः संयोगः सुखदुःखयोः।

तद्विना जीवनं नास्ति प्रेमस्य मूलं अव्ययम्॥


अर्थ: प्रेम जीवन का अविभाज्य स्रोत है, जिसके बिना जीवन सुख और दुःख का संयोग नहीं होता। प्रेम अत्यंत सम्पन्नता और महत्वपूर्ण होता है।


( 2 )  सुखदुःखौ समं कृत्वा प्रेम पुरुषमुत्तमम्।

यस्य सर्वत्र हृदयस्थो ज्ञानं प्रकाशते सदा॥


अर्थ: प्रेम करने वाला पुरुष सुख और दुःख को समान रूप से स्वीकार करता है। जिसका ज्ञान हमेशा हृदय में स्थित रहता है और सब जगह प्रकाशित होता है।


( 3 )  यस्मिन् सर्वाणि भूतानि आत्मैवाभूद् विजानतः।

तत्र को मॊहः कः शॊकः एकत्वम् अनुपश्यतः॥


अर्थ: जो व्यक्ति सभी प्राणियों में अपने आप को समझता है, वहाँ उसके लिए मोह और शोक कहाँ हो सकते हैं? वह एकत्व को अनुभव करता है।


( 4 )  प्रेमः करोति न कार्याणि नैव चाकारयति क्रियाः।

आत्मारामो न कर्मारामः स योगी प्रेममाश्रितः॥


अर्थ: प्रेम करने वाला व्यक्ति कार्यों को नहीं करता है, और क्रियाओं को नहीं करता है। वह आत्माराम (अपने आत्मा में रमण करने वाला) है, कर्माराम (कर्म में रमण करने वाला) नहीं है। ऐसा योगी प्रेम को आधार बनाकर जीता है।


( 5 )  यः प्रेमया भावयति सर्वभूतेषु समं प्रियम्।

स योगी परमो भूत्वा माम् शान्तिम् अधिगच्छति॥


अर्थ: जो व्यक्ति सभी प्राणियों में समान रूप से प्रियता भावना को प्रगट करता है, वह योगी सबसे परम होकर मुझे प्राप्त करता है और शांति को प्राप्त करता है।


( 6 )   योगिनां हृदये वासं योगिनां चित्ते निधानम्।

प्रेमं वर्षति सर्वेषां प्रेमात्मा परमो हरिः॥


अर्थ: प्रेमात्मा, सर्वशक्तिमान भगवान, प्रेम के आधार से योगियों के हृदय में वास करता है और योगियों के चित्त में आवास स्थान बनाता है। प्रेम उन सबके ऊपर वर्षता है।


( 7 ) अहं प्रेमिणां प्रेमस्य च भावयामि सदा हृदि।

तस्मात् प्रेमं परं जानीयां यथा मां प्रीयते जगत्॥


अर्थ: मैं हमेशा प्रेमीओं के प्रेम को अपने हृदय में भावना करता हूँ। इसलिए, जगत् मुझे प्रिय होने की प्रेम को परम जानना चाहिए॥


( 8 )  प्रेमेणैव जगत् सर्वं स्थितं यत्र प्रेम्यते।

तस्मिन् प्रेमे सदा तिष्ठन्ति भक्ताः परमसन्तुष्टये॥


अर्थ: प्रेम के द्वारा ही सम्पूर्ण जगत् स्थित है, जहां प्रेम को प्रिय जाना जाता है। उस प्रेम में हमेशा भक्तजन संतुष्टि की प्राप्ति के लिए स्थित रहते हैं॥


( 9 )  प्रेमस्य रसनां मात्रं वक्तुं शक्नोति कश्चन।

प्रेमयुक्तस्य भक्तस्य वाणी रसायनं भवेत्॥


अर्थ: केवल कुछ ही लोग प्रेम की अनुभूति को वाक्य रूप में व्यक्त कर सकते हैं। प्रेमयुक्त भक्त की वाणी रसायन (अमृत) के समान होती है॥


( 10 )  प्रेमायामृतसंस्पर्शात् सर्वदा सद्गतिं लभेत्।

प्रेमेण सर्वभूतानां हृदयं प्रकाशयेत्॥


अर्थ: प्रेम के अमृत संस्पर्श से हमेशा सत्संगति (श्रेष्ठ गति) प्राप्त होती है। प्रेम के द्वारा सभी प्राणियों के हृदय को प्रकाशित करें॥


( 11 )  प्रेमस्य सर्वदा रूपं न पश्यन्ति मूढचेतसः।

विषयेषु विपरीतेषु विचेष्टन्ति दुरात्मनः॥


अर्थ: मूढचेतस लोग हमेशा प्रेम की सच्ची रूपता को नहीं देखते हैं। वे दुरात्मा व्यक्ति विषयों के विपरीत में विचार करते हैं॥


निष्कर्ष :


दोस्तों आज की इस पोस्ट में आपने जाना प्रेम पर संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (Prem Par Sanskrit Shlok 

) मै उम्मीद करता हूँ कि आपको प्रेम संस्कृत श्लोक अर्थ सहित पसंद आया होगा अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करें अगर इससे संबंधित आपके मन में कोई सवाल है तो आप कमेंट जरूर करें 


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